यही नहीं दुग्ध विक्रेता मलाई भी चट कर जाते हैं। पिछले एक वर्ष में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के द्वारा लिये गए लगभग 1547 नमूनों में 60 से 70 प्रतिशत नमूने फेल निकले हैं।
दूध और दूध से बने उत्पादों में मिलावट एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। दूध और उससे बने उत्पाद शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन और कैल्शियम का एक प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में इस मिलावट को रोकने और लोगों को जागरूक करने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से तमाम तरह के प्रयास किए जाते हैं। इसके बावजूद मिलावटखोर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। दूध में पानी के साथ-साथ यूरिया, बोरिक एसिड और डिटर्जेंट तक की मिलावट की जा रही है। एक साल के आंकड़ों पर गौर करें तो खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन द्वारा दूध के 1547 नमूने लिये गए, जिनमें से 70 फीसदी तक अधोमानक निकले।
गांव के खाद्य और पेय पदार्थ होते हैं शुद्ध: जेपी सिंह
मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी जेपी सिंह बताते हैं कि गांव में ज्यादातर मिलने वाले खाद्य पदार्थ शुद्ध होते हैं, लेकिन शहर में आते-आते इसमें काफी मिलावट हो जाती है। उन्होंने बताया कि जनपद में बिकने वाले करीब 68.7 प्रतिशत दूध और दुग्ध उत्पाद भारतीय खाद्य मानकों के हिसाब से सही नहीं हैं। यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज और फोर्मलिन जैसी चीजें दूध में विक्रेताओं द्वारा जानबूझकर मिलाई जाती हैं, जिससे दूध को गाढ़ा बनाने और लंबे समय तक चलाने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि अभी दूध के सैंपलों को टेस्ट करने में दस से ज्यादा दिन का समय लगता है, तब तक वह दूध इस्तेमाल हो चुका होता है।
दूध में मिलावट ले सकती है जान
विश्नोई नर्सिंग होम के स्वामी वरिष्ठ फिजीशियन डा. राहुल विश्नोई बताते हैं कि दूध में की जाने वाली मिलावट की भयावह तस्वीर है। लोग थोड़े से लालच के चक्कर में दूसरों की जान से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते, जो बिल्कुल गलत है। उन्होंने बताया कि यह मिलावट लोगों की जान ले सकती है। डब्लूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार मिलावट का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो देशभर में 87 फीसदी भारतीयों को कैंसर हो जाएगा।