Wednesday, 19 August 2020 18:12

लघु उद्योग - कभी नहीं आया इतना बुरा वक़्त

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craftman nagina

उद्योग धंधे अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। कृषि प्रधान बिजनौर जिले में भी चार हजार से अधिक उद्योग धंधे संचालित हैं। उद्योगों के महत्व को इससे समझा जा सकता है कि जैसे सरकार ने लॉकडाउन में खेती के किसी भी काम को बाधित नहीं किया उसी तरह उद्योगों को भी लॉकडाउन के दौरान खुलने की रियायत दी गई।

जिले का काष्ठकला उद्योग विश्व प्रसिद्ध है। खेती से जुड़ा चीनी उद्योग, कागज उद्योग, लकड़ी के अन्य काम के उद्योग भी जिले में अपना वजूद रखते हैं। लॉकडाउन को खुले ढाई महीने से ज्यादा समय हो गया है। लेकिन उद्योगों की हालत में सुधार के बजाए पहले से ज्यादा गिरावट आई है। हालत यह है कि एक जिला, एक उत्पाद योजना में शामिल काष्ठकला उद्योग को 10 प्रतिशत भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं।
चीनी उद्योग : सरकार से पैकेज की होने लगी मांग सीधे गन्ने की खेती से जुड़ा हुआ चीनी उद्योग जिले में सबसे बड़ा है। सबसे ज्यादा रोजगार भी चीनी मिलों से ही मिलता है। लॉकडाउन के समय चीनी का बाजार खत्म हो गया था। चीनी की मुख्य खपत घर में नहीं बल्कि बाजार के उत्पाद जैसे आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, मिठाई, होटल आदि पर ज्यादा होती है। यह खपत 10 प्रतिशत रह गई। लॉक डाउन खुला तो भी बाजार में पहले की तरह रौनक नहीं रही। केंद्र सरकार की ओर से चीनी बिक्री का जो कोटा निर्धारित किया गया, उसके अनुसार भी चीनी की बिक्री नहीं हो रही है। बरकातपुर चीनी मिल ने एक शीतल पेय कंपनी के लिए छह लाख क्विंटल चीनी बनाई थी, लेकिन उसने नहीं खरीदी। चीनी की खपत अब भी गिरी हुई चल रही है। चीनी की खपत कम होने से मिल भी समय से किसानों को गन्ना भुगतान नहीं कर पा रही हैं। बरकातपुर चीनी मिल के गन्ना महाप्रबंधक विश्वासराज सिंह के अनुसार चीनी की खपत बहुत कम हो गई है। मिल के पास चीनी का बड़ा स्टॉक है और अगला पेराई सत्र भी शुरू होने वाला है। सरकार को चीनी मिलों को बचाने के लिए पैकेज जारी करना चाहिए।

काष्ठकला : कभी नहीं आया इतना बुरा वक्त

जिले की काष्ठकला विश्वभर में विख्यात है, इसका मुख्य बाजार यूरोप है। यूरोप अब भी कोरोना की वजह से लॉकडाउन की ही स्थिति में है। काष्ठकला में करीब 12 हजार मजदूरों को रोजगार मिलता है। काष्ठकला के लिए कच्चे माल की कमी नहीं है, लेकिन बाजार इस समय एकदम खत्म हो चुका है। पहले के मुकाबले केवल 10 प्रतिशत ही किसी तरह ऑर्डर मिल रहे हैं। ऐसे समय में काष्ठकला के निपुण कारीगरों को बचाना भी उद्यमियों के लिए चुनौती बना हुआ है। पिछले कुछ सालों में काफी कारीगर दूसरे कामों में जा चुके हैं। लॉकडाउन से पहले काष्ठकला उद्योग अच्छा चल रहा था। अब अगर कारीगर काम न मिलने की वजह से दूूसरे कामों में चले जाएंगे तो उन्हें दोबारा काष्ठकला से जोड़ना मुश्किल हो जाएगा। काष्ठकला उद्यमी जुल्फिकार आलम का कहना है कि काष्ठकला को बचाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ रही है। पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कई बार बिना कोई उत्पाद बनवाए ही मजदूरों को भुगतान करना पड़ रहा है। कारोबार के लिए इतना बुरा वक्त पहले कभी नहीं आया है।

almari making nagina

टिंबर वर्क : कम मिल रहे ऑर्डर, बढ़ रही है लागत

जिले में खिड़की दरवाजे बनाने का काम भी होता है। आसपास के जिलों में भी यह माल सप्लाई होता है। इस उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने पहली बार माल के निर्यात के लिए लाइसेंस बनवाया था, लेकिन माल का ऑर्डर मिलने से पहले ही कोरोना का ग्रहण लग गया। खिड़की, दरवाजे बनाने के लिए खास लकड़ी गुजरात से आती हैं। अभी लकड़ी नहीं आ रही हैं। माल का ऑर्डर पहले से 30 प्रतिशत ही रह गया है तो इतना ही माल बनवाया जा रहा है। कम माल बनने और मजदूरों को पूरी मजदूरी देने से लागत भी बढ़ रही है। उद्योग में इस समय केवल पूंजी ही लगाई जा रही है। टीएमटी टिंबर के मालिक कारोबारी अभिषेक गोयल के अनुसार टिंबर का कोई काम नहीं मिल रहा है। काम की लागत बहुत बढ़ गई है। अभी हालात बदलने की ज्यादा उम्मीद भी नहीं दिख रही है। सरकार ने बिजली के बिल आदि में उद्यमियों को किसी तरह की कोई छूट भी नहीं दी है।

सैनिटाइजर : लॉकडाउन खुलते ही कम हो गई मांग

कोरोना काल में सैनिटाइजर अपने आप में बड़ा उद्योग बन गया। सैनिटाइजर एथेनॉल से बनता है। जिले की चार चीनी मिलों धामपुर, स्योहारा, बरकातपुर व बुंदकी ने एथेनॉल से सैनिटाइजर बनाना शुरू किया। इसके अलावा मोहित पेट्रो केमिकल ने भी सैनिटाइजर बनाया। लॉक डाउन के समय जब जनता घरों में थी और कोरोना संक्रमण के दिन में एक दो मामले ही जिले में मिलते थे तब सैनिटाइजर की डिमांड 50 हजार लीटर प्रति दिन तक थी। अब लॉक डाउन खुल गया और संक्रमण के दिन में कभी कभी 50 से भी अधिक मामले आ रहे हैं तब सैनिटाइजर की डिमांड पांच से सात हजार लीटर प्रति दिन ही रह गई है। उत्साह में मिलों ने पहले जो माल बना लिया था अब वह ही बिकना भारी हो रहा है। मोहित पेट्रो केमिकल के प्रोडक्शन मैनेजर सुुुरेश पवार का कहना है कि पहले हर रोज फैक्टरी से दस हजार लीटर सैनिटाइजर बिकता था। अब किसी दिन 500 तो किसी दिन बहुत मुश्किल से एक हजार लीटर सैनिटाइजर बिकता है। अब जनता सैनिटाइजर खरीदना पसंद नहीं कर रही है।

पेपर मिल : महीने में दस दिन ही खुल रही फैक्टरी

जिले में कई पेपर मिल भी हैं। आसपास के जिलों में जिले के बने कागजों की काफी मांग रहती थी। लेकिन अब स्थिति दूसरी है। कोरोना काल में कच्चा माल मिलने में तो कोई कमी नहीं है लेकिन बिक्री एकदम खत्म है। फैक्टरियों के मालिक अपने संबंधों का हवाला देकर किसी तरह माल बेच रहे हैं। हाल यह है कि कागज की डिमांड कम होने की वजह से फैक्टरी भी या तो पूरी क्षमता से नहीं चलाई जा रही हैं या फिर पूरे महीने फैक्टरी नहीं खुल रही हैं। फैक्टरी कम चलने और मजदूरों को पूरी लागत दिए जाने से उत्पादन की लागत भी काफी बढ़ गई है। हालांकि स्कूल-कॉलेज ऑनलाइन क्लास से पढ़ाई करा रहे हैं लेकिन इससे कागज की इतनी खपत नहीं हो रही है जितनी पहले होती थी। स्कूल कॉलेज में विद्यार्थियों के आने के बाद ही कागज की डिमांड बढ़ेगी। रामा पेपर मिल के मालिक अरुण गोयल बताते हैं कि पहले उनकी फैक्टरी को रोज 200 टन कागज का ऑर्डर मिलता था। अब मुश्किल से 50 टन का ऑर्डर ही मिल पा रहा है। महीने में फैक्टरी केवल दस दिन ही चलाई जा रही है। कोरोना ने कागज का कारोबार लगभग खत्म कर दिया है।

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