दिल्ली, लुधियाना, अमृतसर, मेरठ और दूर-दूर के शहरों से व्यापारी यहां कपड़ा खरीदने आते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में इस उद्योग पर महंगाई, जीएसटी और अन्य कारणों ने बड़ा प्रभाव डाला है। स्थानीय व्यापारियों की मानें तो अब हालात ऐसे हैं कि 80 प्रतिशत पावरलूम की छोटी इकाइयां बंद हो गई हैं। बड़े कारोबारी किसी तरह अपना व्यापार बचाने के प्रयास में जुटे हैं।
इन पावरलूम में कुछ साल पहले करीब छह हजार से अधिक कर्मचारी रोजगार पाते थे, लेकिन पिछले तीन-चार साल में हाल बेहाल हो गया है। इसकी उन्नति का ग्राफ लगातार गिर रहा है। हालत यहां तक आ गई कि छोटी इकाइयां लगातार बंद हो रही हैं। यहां तैयार कपड़े की दूर-दूर तक मांग थी। देश के विभिन्न शहरों के अलावा अमेरिका, अफ्रीका व नेपाल आदि में प्रतिवर्ष पावरलूम से बना कपड़ा निर्यात होता था। जिसका अनुमानित व्यापार करीब 125 करोड़ रुपये का होता था, लेकिन सरकार का सहयोग नहीं मिलने और जीएसटी लागू होने के बाद से व्यापार दम तोड़ता जा रहा है। इसका असर व्यापारी और मजदूर वर्ग पर सीधे रूप में पड़ा है।
रोजी-रोटी का संकट
नगर वह ग्रामीण अंचलों में पिछले कुछ वर्षों तक लगभग दो हजार पावरलूम मशीनें संचालित थीं। जिनमें प्रतिदिन छह हजार से अधिक मजदूर काम करते थे। लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद से काफी कमी आई है। लागत बढ़ने और मांग कम होने से व्यापारियों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई। घाटे के दौर से गुजरने के कारण अधिकांश पावरलूम बंद होने के बाद मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है, जो मजदूर कभी यहां 300 से 400 रुपये प्रतिदिन मजदूरी पाते थे। आज वे 200 रुपये में काम करने को मजबूर हैं, जिससे अधिकांश काम छोड़ चुके हैं।
"वर्तमान में काम करना मुश्किल हो गया है, जीएसटी लागू होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पूर्व में यहां का व्यापारी उधार लेकर अपना काम शुरू कर देता था और धीरे-धीरे ली गई धनराशि को वापस कर देता है। परंतु जीएसटी लागू होने से व्यापारियों का पूरा महीना हिसाब-किताब और टैक्स भरने में ही निकल जाता है। निर्यात पर भी बड़ा असर पड़ा है, जिससे माल की खपत नहीं हो रही है। काम कम होने से मजदूर भी मिलना मुश्किल हो गए हैं। अब व्यापार बचाना कठिन हो रहा है।"
- बालेश जैन, पावरलूम व्यापारी, नहटौर।
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सरकार की उपेक्षा के कारण इस कारोबार में काफी गिरावट आई है। सूत महंगा होने के कारण तथा सूत का कारोबार के लिए कोई कारखाना न होने के कारण काफी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इस काम के लिए महंगी मशीनें संचालित होती हैं, जो छोटे व्यापारियों के लिए लगाना काफी मुश्किल काम है। साथ ही बिजली काफी महंगी होने के कारण भी कारोबार पर असर पड़ा है। व्यापारियों की मांग है कि सरकार द्वारा इस काम के लिए विशेष सहयोग दिया जाए जिससे क्षेत्र की पहचान रहा यह उद्योग बच सके।
- नदीम अंसारी, कपड़ा व्यापारी, नहटौर।
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सरकार की नीतियों में कई बदलाव किए गए हैं। जिसके कारण रंगाई के काम के लिए सुविधाएं कम होती जा रही हैं। रंगाई के लिए प्रयुक्त होने वाला प्रोसेसर काफी महंगा पड़ता है। सरकार की ओर से इसे खरीदने में कोई सहायता नहीं दी जाती है। व्यापारियों का सूत रंगाई का कारोबार भी बंद होता जा रहा है। मजदूर न मिलने के कारण परेशानी और बढ़ गई है। सरकार से मांग है कि वह पावरलूम उद्योग के लिए विशेष पैकेज दे या फिर नई योजना लाए। जिससे इसका अस्तित्व बचाया जा सके।
- इदरीश अहमद, व्यापारी, नहटौर।
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पहले मजदूरी के तौर पर 300 से 400 रुपये की मजदूरी प्रतिदिन हो जाया करती थी। काम भी बहुत अधिक मिलता था, लेकिन कुछ सालों से काम बहुत कम हो गया है। अब तो केवल 200 रुपये ही मजदूरी मिलती है। जिस कारण आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। काम ना होने पर बहुत से कारीगरों ने काम बदल लिया है। कुछ तो दूसरे शहरों में जाकर नौकरी व मजदूरी कर रहे है।
- रमेश कुमार, पावरलूम कारीगर, नहटौर।