Tuesday, 02 August 2016 11:39

ईयरफोन्स का इस्तेमाल है खतरनाक, हो जाइए सावधान

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वॉशिंगटन: बड़ों से लेकर बच्चों तक के कानों में आपने ईयरफोन्स लगे तो देखा ही होगा। तेज़ आवाज में गाने सुनना, टी.वी देखना कई बच्चों की आदत बन चुका है। इसके चलते वे टिनीटिस (कान में लगातार गूंजती आवाज) की समस्या से जूझ रहे हैं। यह बहरेपन का लक्षण होता है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि इन लक्षणों को प्रारंभिक चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए, क्योंकि इनका सामना कर रहे युवाओं को बहरेपन का गंभीर खतरा है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि टिनीटिस की समस्या, ईयर बड है, जिनका इस्तेमाल युवा संगीत सुनने के लिए हर रोज़ लंबे समय तक करते हैं। इसके अलावा उनका कहना है कि नाइट क्लब, डिस्को और रॉक कंसर्ट जैसे शोर शराबे वाले स्थानों पर जाना भी कान की सेहत के लिए नुकसानदायक है।

टिनीटिस बीमारी के लक्षण
टिनीटिस, एक ऐसी मेडिकल समस्या है, जिसमें कान में लगातार ऐसी आवाज बजती रहती है। इसका कोई बाहरी स्रोत मौजूद नहीं होता है। इससे पीड़ित लोग कानों में लगातार घंटी बजने जैसी आवाज की शिकायत करते हैं। कई तो कान में सीटी बजने, गूंज, फुफकार या चींचीं की सी आवाज बताते हैं।

ब्राजील की साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के तनित गांज सानेचेज ने बताया कि “किशोरों में बड़े पैमाने पर टिनीटिस की समस्या है। इसे चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए, क्योंकि इन युवाओं पर बहरेपन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अगर छोटे बच्चे लगातार उच्च स्तर पर होने वाले शोर के बीच रहेगे, तो संभव है कि जब तक वे 30 या 40 साल की उम्र के होंगे तब तक उनकी सुनने की क्षमता खत्म हो चुकी होगा”। शोधकर्ताओं ने इसे साबित करने के लिए करीब 11 से 17 साल की उम्र वाले बच्चों के कानों का परीक्षण करने के लिए ओटोस्कोप का इस्तेमाल किया था।

इस दौरान किशोरों से एक प्रश्नावली भरने को कहा गया, जिसमें पूछा गया था कि क्या बीते 12 महीनों में उन्होंने टिनीटिस का अुनभव किया है। अगर हां, तो उसकी आवाज कितनी तेज़ थी, कितनी देर तक सुनाई दी और बारंबारता कितनी है। लगभग आधे यानी 54.7 फीसदी बच्चों ने टिनीटिस का अनुभव किया।

हैरान कर देने वाले हैं निष्कर्ष
सानचेज ने कहा कि “टिनीटिस की समस्या का इतने बड़े पैमाने पर पाया जाना खतरनाक है। माना जाता था कि टिनीटिस उम्रदराज लोगों को होने वाली समस्या है। लेकिन हम देख रहे हैं कि अब यह बच्चों और युवाओं को भी हो रही है, क्योंकि इन लोगों का शोर से ज़्यादा सामना होता है। इसके अलावा कुछ और कारक भी इस समस्या के जिम्मेदार हैं”।

टिनीटिस की परेशानी का अनुभव कर चुके बच्चों की सुनने की क्षमता का आंकलन करने के लिए उन पर सायकोअकाउस्टिक परीक्षण किया गया। इसमें अकाउस्टिक चैंबर में ऑडियोलॉजिस्ट ने ऑडियोमीटर का इस्तेमाल कर सुनने की क्षमता की सीमा को मापा। इसके अलावा शोर से होने वाली परेशानी और टिनीटिस की समस्या को भी मापा गया। शोधकर्ताओं ने बताया कि सायकोअकाउस्टिक परीक्षण के दौरान करीब 170 बच्चों में से 49 बच्चों को अकाउस्टिक बूथ में टिनीटिस की परेशानी महसूस हुई।

साउंड बूथ में टिनीटिस की जो सायकोअकाउस्टिक लक्षण मिले, वे वयस्कों में टिनीटिस की लंबे समय से चली आ रही समस्या की तरह ही हैं। सानचेज ने कहा कि “हमने देखा है कि किशोरों को आमतौर पर टिनीटिस की समस्या होती है। लेकिन वयस्कों की तरह वे इसकी ज़्यादा परवाह नहीं करते हैं और इसके बारे में अपने अभिभावकों और शिक्षकों से शिकायत नहीं करते हैं। इसके परिणामस्वरूप वे चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं और इस तरह यह समस्या लंबे समय तक चलती रहती है”।

साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित इस शोध में शोधकर्ताओं ने बताया है कि शोध में शामिल बच्चों में ईयर बड का लगातार इस्तेमाल, शोर-शराबे वाले माहौल में ज़्यादा समय तक रहने जैसी जोखिम भरी आदतें होने के बावजूद, जिन्होंने टिनीटिस की समस्या का अनुभव किया, वे तेज़ आवाज़ को सहन नहीं कर सके।

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