बिजनौर के रहने वाले मुंबई में जा बसे शायर और लेखक दानिश जावेद ने फोन पर बताया कि अनवर जलालपुरी से उनकी पहली मुलाकात 1998 में दुबई के शेख राशिद ऑडिटोरियम में हुई। आखिरी मुलाकात पिछले साल बिजनौर नुमाइश के मुशायरे में हुई। इस पहली और आखिरी मुलाकात के बीच मौजूद लगभग 20 सालों की दोस्ती ने उनकी आदत सी डाल दी।
वे कहते हैं कि आज भी उनका वो कहकहा उनके कानो में गूंजता है, जब पिछले साल बिजनौर नुमाइश के मुशायरे की निजामत के लिए उन्हें फोन किया। उन्होंने हैरत से पूछा, ‘दानिश जावेद साहब आप तो खुद बहुत अच्छे नाजिम हैं, फिर मेरी क्या जरूरत। दानिश ने कहा कि बिजनौर के लोग मुझ से ज्यादा आप से मुहब्बत करते हैं।
दानिश जावेद बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। हिंदुस्तान के दो टुकड़े हो गए। जमीन बंटी, तहजीब और संस्कृति बंटी। नक्शों पर लकीरें खिंचीं। इसी के साथसाथ बंट गईं हिंदी और उर्दू नाम की दो सगी बहनें। दोनों भारत मां की बेटियां थीं, एक बहिन हिंदी का धर्म हिंदू तो दूसरी बहिन उर्दू को मुसलमान बना दिया गया। उसी उर्दू के हिंदुस्तानी शायर थे अनवर जलालपुरी। वह सारी जिंदगी इन बिछड़ी हुई बहनों को मिलाने की कोशिश करते रहे।
उर्दू में किया श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद
1947 के बाद उर्दू जुबान सिमटकर मुशायरों तक रह गई। उसी मुशायरों के आसमान पर चमकने वाले सबसे रोशन सितारों में से एक नाम था अनवर जलालपुरी। अनवर एक शायर, एक लेक्चरार और एक ऐसा नाजिम जिसके बग़ैर मुशायरों का तसव्वुर भी मुश्किल है। आज से 70 साल पहले जिला अंबेडकरनगर के शहर जलालपुर में अनवर साहब पैदा हुए। हिंदी और संस्कृत पर इतना काम किया कि श्रीमद्भागवत गीता जैसी मजहबी किताब का उर्दू शायरी में अनुवाद का दिया। गीता के 701 श्लोकों को उर्दू में ढाल कर उर्दू वालों तक गीता पहुंचाई। अनवर जलालपुरी साहब कहते थे किहजारों साल पहले शको शुभहात में घिरे अर्जुन ये फैसला नहीं कर पा रहे थे कि हक़ क्या है और बातिल क्या। उस समय श्रीकृष्ण ने बेहद साफ़ लहजे में जिंदगी के राज समझा कर उन्हें मंजिले मक़सूद पर पहुंचा दिया।