Wednesday, 26 July 2017 10:50

नगीना काष्ठ उद्योग पर GST की मार

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 wooden handicrafts nagina

नगीना का काष्ठ कला उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 40-45 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्रति वर्ष कमाता है। कभी लगभग दस हजार लोगों को रोजगार देने वाले इस उद्योग में कारीगरों और श्रमिकों  की संख्या अब सिमटकर छह-सात हजार रह गई है। जीएसटी लागू होने के बाद इस उद्योग की रही-सही कमर भी टूट गई है।
इस उद्योग का इतिहास मुगलकाल से शुरू होता है। मुगल काल में तलवारों के दस्ते पर नक्काशी और पच्चीकारी  इस उद्योग की शुरूआत मानी जाती है। अंग्रेजों के समय में बंदूक और छड़ी पर पीलत और हाथीदांत से सजावट की जाने लगी। सिंगारदान और टाइकेस बनने लगे। छड़ी में छिपाई तलवार (गुप्ती) यहां का प्रमुख उत्पाद रहा। इसके कवर पर हाथी दांत से पच्चीकारी की जाती थी। आजादी के बाद इस उद्योग के खराब दिन शुरू हुए। 1947 से 70 तक इस उद्योग के कारीगरों के सामने भुखमरी के हालात बन  गए।

1967 में यहां के कारीगर अब्हुल रशीद को सिंगारदान पर नेशनल अवार्ड मिला तो सरकार का ध्यान इस उद्योग की ओर गया। लकड़ी का काम सिखाने के लिए सरकार ने ट्रेनिंग सेंटर खाला। इसमें प्रवेश लेने वालों को 50 रुपये महीना छात्रवृति दी जाती। इस प्रशिक्षण केंद्र से कुशल कारीगर तैयार होने लगे। आज के नगीना के काष्ठ कला के जाने-माने उद्योगपति जुल्फकार आलम इसी प्रशिक्षण केंद्र की देन हैं। तीन कलाकारों अब्दुल रशीद, बशीर अहमद और अब्दुल सलाम को नेेशनल अवार्ड मिल चुके हैं। वर्ष 1980 से 2000 तक का समय इस उद्योग का स्वर्ण काल माना  जाता है। इस दौरान इस उद्योग का टर्नओवर 70 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। सरकारी नातियों के कारण 2010 के बाद यह कारोबार प्रभावित हुआ। आज इसका टर्नओवर महज 40-45 करोड़ पर सिमट गया है।

इन दिनों उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम काफी बढ़ गए हैं। बड़ी विदेशी कंपनियां भी ये सामान बनाने लगी हैं। तकनीकी सुविधाएं ज्यादा होने के कारण विदेशी माल ज्यादा अच्छा और सस्ता हो गया। 
विदेशी कंपनियों को उनके देश की सरकारों से ज्यादा सुविधाएं मिलीं तो वे वर्चस्व बढ़ाने लगीं। यहां के उद्योगपति खुर्शीद अहमद, अंजार अहमद,  सलीम अहमद, बाबू भाई,  इरशाद अली और इश्तयाक अहमद लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि उन्हें सस्ती दर पर कच्चा माल उपलब्ध कराया जाए, किंतु कुछ नहीं हुआ।

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