युवती का शव पैसे के अभाव में पांच घंटे तक जमीन पर पड़ा रहा। शव ले जाने के लिए अस्पताल कर्मचारी दुत्कारते रहे। धनाभाव में जब वह रिक्शा पर अकेले शव को रखकर ले जाने लगा तो वहां मौजूद दूसरे लोगों का दिल पसीज आया। लोगों ने चंदा इकट्ठा कर शव को जौनपुर तक भिजवाने की व्यवस्था की।
साफिया खातून पुत्री असलम निवासी मुरादागंज थाना लाइनपार जौनपुर अपने मामा याद अली खान व मां के साथ 24 अप्रैल को नगीना देहात थाना क्षेत्र की दरगाह पर जियारत के लिए आई थी। अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई। पहले उसका नजीबाबाद में एक निजी चिकित्सक के यहां उपचार चला। दो दिन पूर्व उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। शुक्रवार दोपहर उसकी मौत हो गई। इसके बाद इमरजेंसी में उसका शव जमीन पर ही रख दिया गया। युवती की मां व मामा ने जिला अस्पताल स्टाफ पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया। इस गरीब परिवार की लाचारी यहीं तक सीमित नहीं रही। जब जौनपुर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक से बात की गई तो उसने 13 हजार का खर्च बताया, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। पांच घंटे तक शव इमरजेंसी में पड़ा रहा। आखिरकार परिजन शव को ई-रिक्शा पर रखकर चल दिए। तभी पुलिस व अन्य लोग वहां पहुंच गए। मीडियाकर्मियों व अन्य लोगों ने पैसे एकत्र कर एंबुलेंस का इंतजाम किया। इसके बाद रोता-बिलखता परिवार शव लेकर चला गया।
..तो रास्ते में फेंक देंगे शव
लाचार परिजन शव ई-रिक्शा में रखकर चले और यह कह दिया कि पैसे नहीं हैं शव को रास्ते में डाल देंगे। इस पर लोगों का दिल पसीज गया और मदद के लिए आगे आए। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी एंबुलेंस से शव भिजवाने को हाथ खड़े कर दिए।
बोले, सीएमएस
"युवती की मौत के बाद उन्होंने खुद एंबुलेंस बुलवाई थी। जौनपुर के होने के कारण शव को एंबुलेंस से नहीं भिजवाया जा सकता था। विशेष परिस्थितियों में प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश से ही गैरजनपद में शव भिजवाने का प्रावधान है। अगर जिले के रहने वाले होते तो शव घर तक भिजवाया जाता।" .....डा. सुखबीर सिंह, अधीक्षक जिला अस्पताल