एक समय था, जब नजीबाबाद शहर को औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता था। नजीबाबाद का नाम दूर-दूर तक पहुंचाने में यहां के ट्रांसपोर्टरों की अहम भूमिका थी। नजीबाबाद एवं आसपास के क्षेत्रों में संचालित औद्योगिक इकाइयों से तैयार माल ट्रकों से पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान सहित देश के कोने-कोने में पहुंचाया जाता था। नजीबाबाद में संचालित दि नजीबाबाद पब्लिक कॅरियर वेलफेयर एसोसिएशन के संरक्षण में प्रत्येक एक घंटे के बाद ट्रकों को बाहर भेजने के लिए ट्रक नंबरों की लंबी सूची पढ़ी जाती थी। जानकारों का कहना है एक दशक पहले नजीबाबाद में 600 से अधिक ट्रक थे। प्रतिवर्ष घटते-घटते इनकी संख्या अब 300 से भी कम रह गई है।
बंद हो चुकी प्रमुख औद्योगिक इकाइयां
लक्ष्मी कत्था फैक्ट्री, मानसरोवर पेपर मिल, चंद्रा कत्था इंडस्ट्रीज, थम्सअप फैक्ट्री, गुड़ उत्पाद से जुड़े क्रेशर बंद होने से इन संस्थानों में उत्पादन बंद हो गया। जिससे कारखानों से सामान दूर-दूर तक ले जाने वाले ट्रक बेकार हो गए।
एनसीआर में निचले मॉडल की एंट्री पर रोक
सरकार के सख्त नियम भी ट्रांसपोर्टरों को रास नहीं आए। दिल्ली, एनसीआर में निचले मॉडल की गाड़ियों की एंट्री पर रोक के सरकार फैसले से ट्रांसपोर्टर अपनी गाड़ियां बेचने पर विवश हुए। नई गाड़ी नहीं खरीद पाने पर कई ट्रक ऑनर्स ने इस कामकाज से अपना हाथ वापस खींच लिया।
महंगाई ने तोड़ी ट्रांसपोर्टरों की कमर
ट्रक यूनियन के सचिव मुशर्रफ अली का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में महंगाई दो से तीन गुना बढ़ गई, लेकिन आमदनी कम हो गई। समय के साथ साथ दस टायरा ट्रकों की डिमांड भी कम होने लगी है। जिससे ट्रांसपोर्ट कारोबार लगातार पिछड़ रहा है।