फिर कमीशन ने मुख्यालय के लिए भूमि तलाश शुरू की। फिर झालू में मुख्यालय स्थापना की कोशिश की गई, लेकिन यह रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी। झालू में अंग्रेज कमिश्नर की पत्नी पर मधुमक्खियों ने हमला बोल दिया था। उनकी हमले में मौत हो गई थी। झालू में आज भी उनकी की समाधि बनी है। अंतत: मुख्यालय बिजनौर ही बन गया।
डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के मुताबिक इससे पहले बिजनौर मुरादाबाद का हिस्सा था। 1817 में यह मुरादाबाद से अलग हुआ। नाम मिला नार्थ प्रोविस ऑफ मुरादाबाद। मुख्यालय बना नगीना। इसके पहले कलक्टर बने मिस्टर बोसाकवेट। उन्होंने अपना कार्यभार एनजे हैलहेड को सौंपा। हैलहेड ने नगीना से हटाकर बिजनौर को मुख्यालय बनाया। जिला मुख्यालय नगीना से बिजनौर लाने का मुख्य कारण नगीना समय के अनुकूल नहीं था। यह भी बताया गया कि बिजनौर को इसलिए चुना गया क्योंकि यह मेरठ छावनी के नजदीक था। जरूरत पड़ने पर कभी भी सेना को बिजनौर बुलाया जा सकता था।
नगीना निवासी पुरानी कलेक्टरी को आज भी जानते हैं, जहां जनपद के पहले कलेक्टर का मुख्यालय होता था। अब यह जगह खंडहर में तब्दील है।
अब यहां राजकीय बालिका विद्यालय बनाया जा रहा है। नगीना के बाद जनपद मुख्यालय की पहली पसंद अंग्रेजी हुकूमत के लिए कस्बा झालू था। बदनसीबी के कारण झालू जिला मुख्यालय नहीं बन सका। झालू में जहां राजकीय बालिका इंटर कॉलेज है, वहां से कुछ दूरी पर सहकारी समिति कार्यालय के पास अंग्रेज कमिश्नर का कैंप लगा था।
कैंप के दौरान अंग्रेज की पत्नी को आराम के लिए झालू मुफीद लगा। उन्होंने अपने पति से झालू को जिला बनाने की वकालत की। कमिश्नर इसके लिए तैयार हो गए थे। कमिश्नर की पत्नी एक पेड़ के नीचे आराम कर रही थीं। पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता लगा था। अंग्रेज की पत्नी को (डिंगारा ) मधुमक्खी चिपट गईं। अंग्रेज की पत्नी वहां से भागीं। मधुमक्खियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। इस दौरान कमिश्नर पति और उनके सिपहसालार भी उनकी मदद के लिए पहुंचे। थोड़ी देर बाद अंग्रेज कमिश्नर के पत्नी की मौत हो गई। कॉलेज से पहले यहां कमिश्नर के पत्नी की याद में समाधि बनी। समाधि आज भी मौजूद है। अंग्रेज कमिश्नर की पत्नी की मौत के बाद उनका झालू को जिला बनाने का इरादा बदल दिया। इसके बाद अंग्रेज कमिश्नर ने बिजनौर को जिला बनाने पर अपनी मोहर लगा दी। इस 200 साल के सफर में जनपद ने बहुत कुछ देखा। जिले में पांच तहसील थी। आजादी की लड़ाई में बास्टा क्षेत्र वालों के ज्यादा सक्रिय रहने पर अंग्रेज अफसरों ने इसे भंग कर दिया। बाद में 1986 में कांग्रेस ने चांदपुर तहसील बनाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने इसकी आधारशिला रखी। बिजनौर जिले के कुछ इलाकों को बाद में हरिद्वार में शामिल कर दिया गया। 200 साल के सफर पूरा होने से एक सप्ताह पूर्व एशिया का सबसे बड़ा ब्लॉक कोतवाली भंग कर दो भागों में बांट दिया गया। यानि बढ़ापुर को ब्लाक का रुतबा मिल गया।
बिजनौर जिले का 200 साल का सफर पूरा हो गया। सफर के दौरान यहां के निवासियों को कई मोड़ से गुजरना पड़ा। वर्ष 1817 में बिजनौर जनपद की स्थापना हुई। सर्वप्रथम इसका मुख्यालय नगीना बनाया गया।
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- Source: AmarUjala