बिजनौर जिले के नूरपुर के टंडेरा गांव में गुरुवार की सुबह एक ऐसी घटना घटी, जिसने हर संवेदनशील हृदय को झकझोर दिया। कर्ज के बोझ तले दबे एक गरीब परिवार ने जहर खाकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। यह सिर्फ एक पारिवारिक त्रासदी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की जनविरोधी आर्थिक नीतियों की पोल खोलने वाला मर्मांतक सच है।
पुखराज नाम का एक मेहनतकश मजदूर, जो कभी घोड़ा-बुग्गी चलाकर परिवार का पेट पालता था, आज ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। उसकी पत्नी रमेशिया और दोनों बेटियाँ—नीतू और शीतू—इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं। यह हादसा सिर्फ पुखराज की नहीं, बल्कि इस व्यवस्था की हार है, जिसने अपने ही नागरिकों को कर्ज और बेबसी के गर्त में धकेल दिया।
कर्ज, कर्ज और सिर्फ कर्ज—यही थी ज़िंदगी
चार साल पहले बेटी की शादी के लिए पुखराज ने पहली बार कर्ज लिया। लेकिन यह कर्ज धीरे-धीरे उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया। एक कर्ज चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लेना उसकी नियति बन गई। उसके बेटे सचिन ने भी साहूकार से बाइक गिरवी रखकर 25 हजार का कर्ज लिया था।
स्वाभिमान फाइनेंस और बालाजी फाइनेंस जैसी कंपनियों से महिलाओं को दिए जाने वाले ‘समूह ऋण’ का बोझ भी इस परिवार पर था। 50 हजार का कर्ज लिया गया था, जिसमें से 16 किस्तें चुका दी गई थीं। 17वीं किस्त देने की मियाद बीतने पर वसूली एजेंटों का डर पूरे घर में छाया हुआ था।
सरकार कहां है, जब गरीब मर रहा है?
क्या यह वही उत्तर प्रदेश है, जिसकी सरकार गरीबों के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करती है? क्या यही “डबल इंजन की सरकार” है, जो हर घर को रोशनी और हर हाथ को काम देने के वादे करती है?
पुखराज जैसे हज़ारों लोग आज भी तिरपाल की झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। सरकार की ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ सिर्फ कागजों में ही सीमित रह गई है। ज़मीन बेचकर किसी तरह जी रहा यह परिवार आखिर किससे मदद की गुहार लगाता?
टूटते रिश्ते, बिखरता परिवार
आर्थिक तंगी सिर्फ जेब नहीं तोड़ती, वह रिश्तों को भी तोड़ देती है। पुखराज के तीनों भाइयों से बात तक नहीं होती थी। न कोई मदद करता, न कोई पास आता। पिछले दो दिन से पुखराज और उसके बेटे सचिन के बीच भी लगातार झगड़े हो रहे थे। आखिरकार सचिन ने गुस्से में ज़हर लाकर आत्महत्या की धमकी दी। लेकिन उससे पहले ही उसके पिता ने वही ज़हर छीन लिया और अपने परिवार सहित निगल लिया।
किसके दरवाज़े जाएं ये गरीब?
इस दर्दनाक हादसे के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है – अगर ये आत्महत्या नहीं, तो और क्या है? जब न रोजगार है, न मदद, न सामाजिक सुरक्षा, न न्याय – तो क्या कोई इंसान जिंदा रहना चाहेगा?
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि एक सिस्टम की शर्मनाक असफलता है। यह वो भारत नहीं है, जिसका सपना हमारे संविधान निर्माताओं ने देखा था। यह वो उत्तर प्रदेश नहीं है, जहां “सबका साथ, सबका विकास” की बातें होती हैं।
अब भी अगर सरकार नहीं जागी…
आज अगर सरकार इस घटना से नहीं जागती, तो कल किसी और पुखराज की कहानी इसी तरह सुर्खियों में होगी। अगर गरीबी, बेरोज़गारी और कर्ज के खिलाफ सरकार ठोस कदम नहीं उठाती, तो ये सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।
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