बाकी बचे भट्ठे बरसात शुरू होने से पहले ही बंद कर दिए गए हैं। कोयले के दाम दो गुने होने और ईंट के दाम नहीं बढ़ने से भट्ठा स्वामियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ये भी वजह है कि भट्ठों पर ईंट का बड़ा स्टॉक भी नहीं है। भट्ठे बंद होने से श्रमिकों के सामने भी रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
जिले में करीब 320 भट्ठे हैं, ये सभी बरसात शुरू होने से पहले बंद हो गए हैं। इनमें से 40 प्रतिशत ईंट भट्ठे कोरोना की दूसरी लहर से पहले ही बंद हो गए थे। बाकी भट्ठे मई माह में बंद कर दिए गए हैं। कोयले के दाम दोगुना होने र्व इंट के दाम नहीं बढ़ने के कारण ये सभी भट्ठे बंद किए गए हैं। भट्ठे बंद होने से वहां काम करने वाले श्रमिकों के परिवार के सामने भी रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। एक ईंट भट्ठे पर 150 से 160 श्रमिक काम करते हैं। भट्ठे बंद होने के बाद इन सभी श्रमिकों को उनके घर भेज दिया गया है। ऐसे हालात में उन्हें और काम भी नहीं मिल रहा है।
भट्ठों पर आग र्में इंट सेंकने के लिए सात हजार रुपये टन कोयला मिलता था। लेकिन अब पिछले दिनों से कोयले के दाम बढ़ा दिए गए हैं। अब कोयला 14 हजार रुपये टन मिल रहा है। एक टन कोयले में 50 हजार कच्ची ईंट की आग में सिकाई की जाती है। एक हजार ईंट 4500 रुपये में बिक रही हैं। कोयले के दाम दोगुने होने के बार्द इंट के दाम नहीं बढ़ने से ईंट भट्ठा स्वामियों को घाटा उठाना पड़ रहा है।
गुजरात से आता है कोयला
ईंट भट्ठा स्वामी सीधे गुजरात के गांधी धाम से कोयला मंगवाते हैं। कोयले के दाम दोगुने क्यों हुए ये गुजरात में भी कोई बताने को तैयार नहीं है। भट्ठों पर अब ईंट का स्टॉक भी ज्यादा नहीं है। पहले ईंटों से भट्ठे भरे रहते हैं। अब छह सात लाख ईंट का स्टॉक ही भट्ठों पर है। महंगाई के दौर में ईंट भट्ठा स्वामी भी ईंट का स्टॉक करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
छूट पर मिलने वाला कोयला अब नहीं मिल रहा
जिर्ला इंट भट्ठा एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद जावेद व सचिव रविंद्र कुमार के मुताबिक कोयले के दाम दोगुने होने र्व इंट के दाम नहीं बढ़ने पर जिले के सभी 320 भट्ठे बंद हो गए हैं। चार साल पहले जिले के भट्ठा स्वामियों को छूट पर कोयला एफसीआई के गोदाम से मिलता था। ये कोयला मिलना अब बंद हो गया है। कोयले की बिजनौर में रैक भी नहीं आ रही। जो कोयला सात हजार रुपये टन मिलता था। छूट पर वह 4500 रुपये टन मिल जाता था। कोयला तो आता है पर ये कहां जा रहा है कुछ नहीं पता है। इस कोयले के आवंटन के लिए पहले डीएम के साथ एक कमेटी बनी होती थी। अब ये समिति भी नहीं है।