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मेरे मन की बकवास:
सुबह घूमना और जॉगिंग बंद कर दी है. आज से 3 साल पहले दिल्ली में जब जाड़े में बाहर धुंध होती थी,तो मुझे लगता था कि सुहाना मौसम हो गया है.
लेकिन जबसे फॉग और स्मॉग का लफड़ा टीवी वालों ने दिखाया है,हर बार यह क्रम टूट जाता है.
हमारे लुटियन इलाके में इसे लेकर बहुत गुस्सा होने से यह चिंता राष्ट्र की चिंता में कब तब्दील हो जाता है,पता ही नहीं चलता।
पसमांदा आंदोलन के बागबान- अभिनेता दिलीप कुमार
हम भारतीय सिनेमा को प्यार करते हैं उसको सोते, जागते, ओढ़ते, बिछाते हैं उसके लिए प्रार्थना करतें हैं। मशहूर हस्तियों को लोग सीमाओं से परे होकर चाहते हैं। अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हमारे दिलों दिमाग मे एक खास जगह बनाये रहते हैं और हम जैसे दर्शकों को सिनेमा हॉल की चारदीवारी के बाहर तक भी प्रभावित करते हैं।
दरअसल बाबरी मस्जिद पसमांदा समाज का मुद्दा है ही नहीं
हर समाज के अपने मुद्दे होते हैं। जिस तरह से विकसित देश के मुद्दों को पहली दुनिया की समस्या (first world problems) कहा जाता हैं और विकासशील देशों के मुद्दों को तीसरी दुनिया की समस्या (third world problems) कहा जाता हैं, उसी तरह पसमांदा समाज और अशराफ समाज के मुद्दे भी अलग अलग हैं।
My Name is Biryani and I am Not a Terrorist
My favourite Biryani meme on social media says 'I can't make everyone happy, I am not Biryani!!" Biryani has always been associated with happiness and bliss in pop culture, but when Biryani gets associated with terrorism, I have all the reasons to get upset and invoke that cliché Bollywood tag-line in Biryani's defence. Yes, the ubiquitous Biryani needs a defence from the symbolic violence.