Monday, 01 August 2016 11:30

अब न कार्ड चाहिए, न कैश, शॉपिंग या फंड ट्रांसफर के लिए RBI लाया ये ऐप!

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भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जल्द ही देशभर में भारत बिल पेमेंट सिस्टम लॉन्च किया जायेगा. साथ ही टीआरइडीएस यानी ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंट सिस्टम को भी मौजूदा वित्तीय वर्ष में लॉन्च किया जा सकता है.

दूसरी ओर ‘पीडब्ल्यूसी’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि एडवांस पेमेंट इकोसिस्टम की बदौलत भारत जैसे उभरते हुए अर्थव्यवस्थावाले देश में भुगतान की प्रक्रिया और आसान व सहज हो सकती है.

हालांकि, बिल पेमेंट से जुड़े अनेक इलेक्ट्रॉनिक विकल्प अब भी मौजूद हैं, लेकिन इन नये तरीकों से सभी बिलों का भुगतान एक ही प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जा सकेगा. इस पूरे मसले से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का यह आलेख ...

भारत जैसे उभरते हुए अर्थव्यवस्था वाले देश में उन्नत टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से रकम भुगतान की प्रक्रिया का परिदृश्य बदल रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम में हो रहे विकास से अर्थव्यवस्था में भुगतान के स्वरूप में तेजी से बदलाव आयेगा. ‘पीडब्ल्यूसी’ की एक रिपोर्ट में एडवांस पेमेंट इकोसिस्टम के बदौलत भुगतान की प्रक्रिया में व्यापक वृद्धि होने की उम्मीद जतायी गयी है. बिजनेस ऑपरेटिंग मॉडल के ग्लोबल भुगतान सिस्टम से जुड़ने और दुनियाभर में लोगों की उस तक आसान पहुंच होने जैसे दो बड़े फैक्टर बदलाव की इस मुहिम के महत्वपूर्ण सूत्रधार बनेंगे.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे जैसी समस्याओं से निबटने के लिए इस पर सबसे ज्यादा फोकस करना होगा, ताकि प्रोडक्ट या सर्विस का भुगतान आसान बनाया जा सके.

मौजूदा दौर में मोबाइल वॉलेट्स, वर्चुअल कार्ड्स और एकाउंट, सोशल मीडिया व कॉन्टेक्टलेस पेमेंट आदि ज्यादा प्रचलित हो रहे हैं. इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इनके माध्यम से भुगतान के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है. इससे समय और परिवहन खर्च भी बचता है. तकनीक पसंद और बैंक

खातों से वंचित लोगों के लिए यह बेहद सुविधाजनक बन रही है.

रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि यूटिलिटी बिल्स, मोबाइल बिल्स और स्कूल या कॉलेज फी आदि के लिए इस माध्यम से भुगतान की सुविधा मुहैया होेने की दशा में यूजर्स को और आसान होगी.

‘पीडब्ल्यूसी’ के फाइनेंशियल सर्विसेज से जुड़े एक विशेषज्ञ के हवाले से ‘इकोनोमिक टाइम्स’ में छपी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंक खातों से वंचित बड़ी आबादी और रेगुलेटरी एजेंडा के विस्तार से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को फाइनेंशियल सिस्टम से जोड़ा जा सकता है. फिन-टेक कंपनियों की मदद से भारत जैसे देशों में इस माध्यम से होनेवाले भुगतान की प्रक्रिया में तेजी आयेगी. तकनीक आधारित यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस और भारत बिल पेमेंट्स सिस्टम से भुगतान की प्रक्रिया में व्यापक सुधार आने की उम्मीद जतायी जा रही है.

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस

नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) ने हाल ही में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआइ लॉन्च किया है. यूपीआइ का इस्तेमाल त्वरित और ऑनलाइन बैंक पेमेंट्स के लिए किया जा सकता है. इस माध्यम से किसी व्यक्ति को रकम भेजने के लिए उसके यूपीआइ पहचान की जरूरत होती है. यह इमेल आइडी की तरह एक वर्चुअल पहचान है.

यह यूजर्स का नाम या फोन नंबर कुछ भी हो सकता है. इसे आइएमपीएस यानी इम्मीडिएट पेमेंट सिस्टम की तर्ज पर गठित किया गया है, जिसका इस्तेमाल बैंक खाते से कई बार पैसे भेजने के लिए किया जाता है. यह सिस्टम सातों दिन और 24 घंटे काम करता है. इसका इस्तेमाल ऑनलाइन शॉपिंग के लिए किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए डेबिट कार्ड नंबर, एक्सपाइरी डेट और सीवीवी कोड की जरूरत नहीं होती और न ही ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड का इंतजार करना होता है. इसमें सिर्फ यूपीआइ आइडी डालना होता है और ट्रांजेक्शन को मंजूरी देने के लिए मोबाइल फोन पर अलर्ट आयेगा, जिसे वैरिफाइ करना होगा. अब तक इस सिस्टम को पूरी तरह से सुरक्षित माना जा रहा है.

भारत बिल पेमेंट सिस्टम

भारत बिल पेमेंट सिस्टम एक इंटेग्रेटेड बिल पेमेंट सिस्टम है. इसमें एजेंट्स के नेटवर्क को शामिल करते हुए उपभाेक्ताओं को बिल पेमेंट की आसान सुविधा मुहैया करायी जाती है. साथ ही ग्राहक को भुगतान पूरा होने का एकनॉलेजमेंट तुरंत मिल जाता है.
इस सिस्टम के माध्यम से शिक्षा, बीमा, परिवहन, दूरसंचार, तकनीकी और मनोरंजन सेवाओं से जुड़े सभी बिलों का भुगतान एक प्लेटफॉर्म के जरिये किया जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस सिस्टम को लागू करने से संबंधित दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं.

केंद्रीय बैंक अगस्त तक एक इंटीग्रेटेड बिल पेमेंट टूल पेश कर सकते हैं, जिसे भारत बिल पेमेंट सिस्टम के नाम से जाना जायेगा. इस सिस्टम के तहत अनेक कंपनियों को बिड के जरिये लाइसेंस जारी किये जायेंगे. सिस्टम शुरू होने के बाद ग्राहकों के बिल लेनेवालों के लिए भी आसानी हो जायेगी. अलग-अलग बैंकों में खाता रखनेवाले बिलर्स एक ही अकाउंट के जरिये सारे बिल ले पायेंगे.

कैसे हुई शुरुआत और ग्राहकों को क्या होगा फायदा
आधुनिक तकनीक आधारित इस सिस्टम की शुरुआत करने के लिए रिजर्व बैंक ने व्यावहारिकता के अध्ययन हेतु जी पद्मनाभन की अध्यक्षता में एक समिति बनायी थी. इस समिति ने यह अनुमान लगाया था कि देश के 20 प्रमुख शहरों में प्रत्येक वर्ष 3,080 करोड़ बिल जारी होते हैं, जिनकी भुगतान की रकम करीब 6,223 अरब रुपये के आसपास है. इस समिति का मानना है कि देश में बिल भुगतान की मौजूदा व्यवस्था उपभोक्ता-केंद्रित होने के बजाय संस्था-केंद्रित है.

इस कारण ग्राहकों को विविध विकल्प और विभिन्न संस्थाओं की सुविधा मुहैया होने के बावजूद वे सही तरीके से इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. बिल भुगतान की प्रक्रियाओं में तालमेल का अभाव होना, इसका बड़ा कारण माना गया है. चूंकि देश की बड़ी आबादी इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सुविधाओं से वंचित है, लिहाजा ज्यादातार लोगआज भी कैश या चेक से भुगतान को तरजीह देते हैं.

कैसे काम करेगा यह सिस्टम
जीआइआरओ यानी जनरल इंटरबैंक रेकरिंग ऑर्डर पर आधारित इस केंद्रीकृत भुगतान प्रक्रिया के तहत देश के विभिन्न इलाकों में स्थापित संबंधित केंद्रों, विविध एजेंसियों, सर्विस प्रोवाइडर्स और संस्थाओं द्वारा जारी किये गये बिलों के बदले लोगों से भुगतान स्वीकार किया जायेगा. बिल चुकाने के लिए इन केंद्रों के जरिये विभिन्न सुविधाएं देनेवाली संस्थाओं को भी अदायगी सुनिश्चित हो सकेगी. हालांकि, इन केंद्रों के जरिये केवल उन्हीं संस्थाओं के बिल जमा किये जा सकेंगे, जो इस सिस्टम से जुड़े होंगे.

ट्रेड रिसिवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम
आरबीआइ के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में कहा है कि भारत बिल पेमेंट सिस्टम के अलावा ट्रेड रिसिवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरइडीएस) को भी जल्द लागू करने की तैयारी की जा रही है. टीआरइडीएस के बारे में उनका कहना है कि माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमइ) सेगमेंट की वित्तीय जरूरतों के लिहाज से यह गेम-चेंजर साबित हो सकता है.
रघुराम राजन ने कहा कि एमएसएमइ का एक बड़ा ग्राहक वर्ग है, जो कई बार एक लंबे अंतराल के बाद भुगतान करता है. इस सिस्टम के माध्यम से उद्यमी अपने ग्राहकों को रकम का भुगतान करने के लिए बेहतर तरीके से अपना दावा पेश कर सकता है. रिजर्व बैंक मौजूदा वित्तीय वर्ष के आखिर तक इसके लिए लाइसेंस जारी करेगा.

इस बारे में रघुराम राजन का कहना है कि आरबीआइ चाहता है कि पेमेंट मैकेनिज्म को ज्यादा-से-ज्यादा सस्ता और सहज बनाया जाये. इससे भारतीय अर्थव्यस्था में छोटे रकम वाली बड़ी संख्या में होनेवाले वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया जा सकता है. इस इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम के तहत ‘टू स्टेप ऑथेंटिकेशन’ की प्रक्रिया अपनायी जायेगी यानी भुगतान को सुरक्षित बनाने और ग्राहकों को भरोसा दिलाने के लिए यह दो चरणों में संपन्न होगा.

इन्हें भी जानें

ई-कॉमर्स से बढ़ रही आॅनलाइन भुगतान की लोकप्रियता

भा रत में ई-कॉमर्स का दायरा बढ़ रहा है और क्रेडिट व डेबिट कार्ड के जरिये भुगतान की लोकप्रियता बढ़ रही है. हालांकि, अब भी एक बड़ी आबादी इसके दायरे में नहीं आयी है, लेकिन इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है.

कैशलेस ट्रांजेक्शन में बढ़ोतरी का मुख्य कारण ई-कॉमर्स में आयी तेजी को माना जा रहा है. दरअसल, ई-कॉमर्स के कारोबार से जुड़ी अनेक कंपनियां ग्राहकों को ऑनलाइन भुगतान की दशा में आकर्षक छूट मुहैया कराती हैं. साथ ही आज देश का युवा वर्ग उच्च-तकनीक आधारित उपकरणों और फंड ट्रांसफर के

इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को ज्यादा तरजीह देता है, जिस कारण इ-कॉमर्स और ऑनलाइन भुगतान, दोनों ही में तेजी आयी है.

स्मार्टफोन से बढ़ा वित्तीय लेन-देन
भारत में स्मार्टफोन की बढ़ती संख्या के साथ ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की संख्या भी बढ़ रही है. पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान देशभर में मोबाइल बैंकिंग के जरिये एक लाख करोड़ रुपये का कैशलेस ट्रांजेक्शन किया गया. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि कुल अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह संख्या बहुत कम है, लेकिन इसमें दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है.

साथ ही मोबाइल वॉलेट के इस्तेमाल से देशभर में ऑनलाइन वित्तीय लेन-देनों की संख्या बढ़ रही है. एक जगह से दूसरी जगह रकम भेजने के लिए मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल केवल 50 फीसदी लोगों ने ही किया, लेकिन शेष लोगों ने बिल पेमेंट, मोबाइल या डीटीएच सर्विस रिचार्ज, मूवी टिकट या यात्रा टिकट ऑनलाइन खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल किया.

पेमेंट गेटवे में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की बड़ी भूमिका
विविध वाइ-फाइ नेटवर्क के जरिये भुगतान के लिए एक सेंट्रल प्लेटफॉर्म बनाने की दशा में लोगों को काफी सुविधा होगी. ‘ट्राइ’ का मानना है कि वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या बढ़ने की दशा में लोगों को किसी भी प्रकार के बिल के भुगतान में अासानी होगी. इससे ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे भुगतान की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी होगी.

भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स
भारतनेट प्रोजेक्ट के तहत देशभर के सभी पंचायतों और गांवों को इंटरनेट की कनेक्टिविटी मुहैया कराने की कवायद की जा रही है. भारत में संचार सेवाओं को रेगुलेट करनेवाली अथॉरिटी ट्राइ यानी टेलकम रेगुलेटरी अथॉरिटी छोटे और लघु उद्यमियों से यह जानने में जुटा है कि देशभर में कैसे छोटे-छोटे पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स स्थापित किये जा सकते हैं और उनमें वे किस तरह से भागीदारी निभा सकते हैं.

भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की स्थिति
31,518 पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स हैं देशभर में.
4.7 करोड़ पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स हैं दुनियाभर में.
568 फीसदी बढ़ोतरी हुई है दुनियाभर में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या में वर्ष 2013 से अब तक.
12 फीसदी की ही महज बढ़ोतरी हुई है भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या में वर्ष 2013 से अब तक.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जल्द ही देशभर में भारत बिल पेमेंट सिस्टम लॉन्च किया जायेगा. साथ ही टीआरइडीएस यानी ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंट सिस्टम को भी मौजूदा वित्तीय वर्ष में लॉन्च किया जा सकता है.
 
दूसरी ओर ‘पीडब्ल्यूसी’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि एडवांस पेमेंट इकोसिस्टम की बदौलत भारत जैसे उभरते हुए अर्थव्यवस्थावाले देश में भुगतान की प्रक्रिया और आसान व सहज हो सकती है. हालांकि, बिल पेमेंट से जुड़े अनेक इलेक्ट्रॉनिक विकल्प अब भी मौजूद हैं, लेकिन इन नये तरीकों से सभी बिलों का भुगतान एक ही प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जा सकेगा. इस पूरे मसले से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का यह आलेख ...
 
भारत जैसे उभरते हुए अर्थव्यवस्था वाले देश में उन्नत टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से रकम भुगतान की प्रक्रिया का परिदृश्य बदल रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम में हो रहे विकास से अर्थव्यवस्था में भुगतान के स्वरूप में तेजी से बदलाव आयेगा. ‘पीडब्ल्यूसी’ की एक रिपोर्ट में एडवांस पेमेंट इकोसिस्टम के बदौलत भुगतान की प्रक्रिया में व्यापक वृद्धि होने की उम्मीद जतायी गयी है. बिजनेस ऑपरेटिंग मॉडल के ग्लोबल भुगतान सिस्टम से जुड़ने और दुनियाभर में लोगों की उस तक आसान पहुंच होने जैसे दो बड़े फैक्टर बदलाव की इस मुहिम के महत्वपूर्ण सूत्रधार बनेंगे.
 
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे जैसी समस्याओं से निबटने के लिए इस पर सबसे ज्यादा फोकस करना होगा, ताकि प्रोडक्ट या सर्विस का भुगतान आसान बनाया जा सके. 
 
मौजूदा दौर में मोबाइल वॉलेट्स, वर्चुअल कार्ड्स और एकाउंट, सोशल मीडिया व कॉन्टेक्टलेस पेमेंट आदि ज्यादा प्रचलित हो रहे हैं. इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इनके माध्यम से भुगतान के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है. इससे समय और परिवहन खर्च भी बचता है. तकनीक पसंद और बैंक 
 
खातों से वंचित लोगों के लिए यह बेहद सुविधाजनक बन रही है. 
 
 रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि यूटिलिटी बिल्स, मोबाइल बिल्स और स्कूल या कॉलेज फी आदि के लिए इस माध्यम से भुगतान की सुविधा मुहैया होेने की दशा में यूजर्स को और आसान होगी. 
 
‘पीडब्ल्यूसी’ के फाइनेंशियल सर्विसेज से जुड़े एक विशेषज्ञ के हवाले से ‘इकोनोमिक टाइम्स’ में छपी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंक खातों से वंचित बड़ी आबादी और रेगुलेटरी एजेंडा के विस्तार से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को फाइनेंशियल सिस्टम से जोड़ा जा सकता है. फिन-टेक कंपनियों की मदद से भारत जैसे देशों में इस माध्यम से होनेवाले भुगतान की प्रक्रिया में तेजी आयेगी. तकनीक आधारित यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस और भारत बिल पेमेंट्स सिस्टम से भुगतान की प्रक्रिया में व्यापक सुधार आने की उम्मीद जतायी जा रही है.
 
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस
 
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) ने हाल ही में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआइ लॉन्च किया है. यूपीआइ का इस्तेमाल त्वरित और ऑनलाइन बैंक पेमेंट्स के लिए किया जा सकता है. इस माध्यम से किसी व्यक्ति को रकम भेजने के लिए उसके यूपीआइ पहचान की जरूरत होती है. यह इमेल आइडी की तरह एक वर्चुअल पहचान है. 
 
यह यूजर्स का नाम या फोन नंबर कुछ भी हो सकता है. इसे आइएमपीएस यानी इम्मीडिएट पेमेंट सिस्टम की तर्ज पर गठित किया गया है, जिसका इस्तेमाल बैंक खाते से कई बार पैसे भेजने के लिए किया जाता है. यह सिस्टम सातों दिन और 24 घंटे काम करता है. इसका इस्तेमाल ऑनलाइन शॉपिंग के लिए किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए डेबिट कार्ड नंबर, एक्सपाइरी डेट और सीवीवी कोड की जरूरत नहीं होती और न ही ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड का इंतजार करना होता है. इसमें सिर्फ यूपीआइ आइडी डालना होता है और ट्रांजेक्शन को मंजूरी देने के लिए मोबाइल फोन पर अलर्ट आयेगा, जिसे वैरिफाइ करना होगा. अब तक इस सिस्टम को पूरी तरह से सुरक्षित माना जा रहा है.
 
भारत बिल पेमेंट सिस्टम
 
भारत बिल पेमेंट सिस्टम एक इंटेग्रेटेड बिल पेमेंट सिस्टम है. इसमें एजेंट्स के नेटवर्क को शामिल करते हुए उपभाेक्ताओं को बिल पेमेंट की आसान सुविधा मुहैया करायी जाती है. साथ ही ग्राहक को भुगतान पूरा होने का एकनॉलेजमेंट तुरंत मिल जाता है. 
इस सिस्टम के माध्यम से शिक्षा, बीमा, परिवहन, दूरसंचार, तकनीकी और मनोरंजन सेवाओं से जुड़े सभी बिलों का भुगतान एक प्लेटफॉर्म के जरिये किया जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस सिस्टम को लागू करने से संबंधित दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं. 
 
केंद्रीय बैंक अगस्त तक एक इंटीग्रेटेड बिल पेमेंट टूल पेश कर सकते हैं, जिसे भारत बिल पेमेंट सिस्टम के नाम से जाना जायेगा. इस सिस्टम के तहत अनेक कंपनियों को बिड के जरिये लाइसेंस जारी किये जायेंगे. सिस्टम शुरू होने के बाद ग्राहकों के बिल लेनेवालों के लिए भी आसानी हो जायेगी. अलग-अलग बैंकों में खाता रखनेवाले बिलर्स एक ही अकाउंट के जरिये सारे बिल ले पायेंगे.
कैसे हुई शुरुआत और ग्राहकों को क्या होगा फायदा
 
आधुनिक तकनीक आधारित इस सिस्टम की शुरुआत करने के लिए रिजर्व बैंक ने व्यावहारिकता के अध्ययन हेतु जी पद्मनाभन की अध्यक्षता में एक समिति बनायी थी. इस समिति ने यह अनुमान लगाया था कि देश के 20 प्रमुख शहरों में प्रत्येक वर्ष 3,080 करोड़ बिल जारी होते हैं, जिनकी भुगतान की रकम करीब 6,223 अरब रुपये के आसपास है. इस समिति का मानना है कि देश में बिल भुगतान की मौजूदा व्यवस्था उपभोक्ता-केंद्रित होने के बजाय संस्था-केंद्रित है. 
 
इस कारण ग्राहकों को विविध विकल्प और विभिन्न संस्थाओं की सुविधा मुहैया होने के बावजूद वे सही तरीके से इसका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. बिल भुगतान की प्रक्रियाओं में तालमेल का अभाव होना, इसका बड़ा कारण माना गया है. चूंकि देश की बड़ी आबादी इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सुविधाओं से वंचित है, लिहाजा ज्यादातार लोगआज भी कैश या चेक से भुगतान को तरजीह देते हैं.
कैसे काम करेगा यह सिस्टम
 
जीआइआरओ यानी जनरल इंटरबैंक रेकरिंग ऑर्डर पर आधारित इस केंद्रीकृत भुगतान प्रक्रिया के तहत देश के विभिन्न इलाकों में स्थापित संबंधित केंद्रों, विविध एजेंसियों, सर्विस प्रोवाइडर्स और संस्थाओं द्वारा जारी किये गये बिलों के बदले लोगों से भुगतान स्वीकार किया जायेगा. बिल चुकाने के लिए इन केंद्रों के जरिये विभिन्न सुविधाएं देनेवाली संस्थाओं को भी अदायगी सुनिश्चित हो सकेगी. हालांकि, इन केंद्रों के जरिये केवल उन्हीं संस्थाओं के बिल जमा किये जा सकेंगे, जो इस सिस्टम से जुड़े होंगे.
 
ट्रेड रिसिवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम
 
आरबीआइ के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में कहा है कि भारत बिल पेमेंट सिस्टम के अलावा ट्रेड रिसिवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरइडीएस) को भी जल्द लागू करने की तैयारी की जा रही है. टीआरइडीएस के बारे में उनका कहना है कि माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमइ) सेगमेंट की वित्तीय जरूरतों के लिहाज से यह गेम-चेंजर साबित हो सकता है. 
रघुराम राजन ने कहा कि एमएसएमइ का एक बड़ा ग्राहक वर्ग है, जो कई बार एक लंबे अंतराल के बाद भुगतान करता है. इस सिस्टम के माध्यम से उद्यमी अपने ग्राहकों को रकम का भुगतान करने के लिए बेहतर तरीके से अपना दावा पेश कर सकता है. रिजर्व बैंक मौजूदा वित्तीय वर्ष के आखिर तक इसके लिए लाइसेंस जारी करेगा. 
 
इस बारे में रघुराम राजन का कहना है कि आरबीआइ चाहता है कि पेमेंट मैकेनिज्म को ज्यादा-से-ज्यादा सस्ता और सहज बनाया जाये. इससे भारतीय अर्थव्यस्था में छोटे रकम वाली बड़ी संख्या में होनेवाले वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया जा सकता है. इस इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम के तहत ‘टू स्टेप ऑथेंटिकेशन’ की प्रक्रिया अपनायी जायेगी यानी भुगतान को सुरक्षित बनाने और ग्राहकों को भरोसा दिलाने के लिए यह दो चरणों में संपन्न होगा.
 
इन्हें भी जानें
 
ई-कॉमर्स से बढ़ रही आॅनलाइन भुगतान की लोकप्रियता
 
भा रत में ई-कॉमर्स का दायरा बढ़ रहा है और क्रेडिट व डेबिट कार्ड के जरिये भुगतान की लोकप्रियता बढ़ रही है. हालांकि, अब भी एक बड़ी आबादी इसके दायरे में नहीं आयी है, लेकिन इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है. 
 
कैशलेस ट्रांजेक्शन में बढ़ोतरी का मुख्य कारण ई-कॉमर्स में आयी तेजी को माना जा रहा है. दरअसल, ई-कॉमर्स के कारोबार से जुड़ी अनेक कंपनियां ग्राहकों को ऑनलाइन भुगतान की दशा में आकर्षक छूट मुहैया कराती हैं. साथ ही आज देश का युवा वर्ग उच्च-तकनीक आधारित उपकरणों और फंड ट्रांसफर के
 
इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को ज्यादा तरजीह देता है, जिस कारण इ-कॉमर्स और ऑनलाइन भुगतान, दोनों ही में तेजी आयी है.
स्मार्टफोन से बढ़ा वित्तीय लेन-देन
 
भारत में स्मार्टफोन की बढ़ती संख्या के साथ ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की संख्या भी बढ़ रही है. पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान देशभर में मोबाइल बैंकिंग के जरिये एक लाख करोड़ रुपये का कैशलेस ट्रांजेक्शन किया गया. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि कुल अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह संख्या बहुत कम है, लेकिन इसमें दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है. 
 
साथ ही मोबाइल वॉलेट के इस्तेमाल से देशभर में ऑनलाइन वित्तीय लेन-देनों की संख्या बढ़ रही है. एक जगह से दूसरी जगह रकम भेजने के लिए मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल केवल 50 फीसदी लोगों ने ही किया, लेकिन शेष लोगों ने बिल पेमेंट, मोबाइल या डीटीएच सर्विस रिचार्ज, मूवी टिकट या यात्रा टिकट ऑनलाइन खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल किया.
 
पेमेंट गेटवे में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की बड़ी भूमिका
 
विविध वाइ-फाइ नेटवर्क के जरिये भुगतान के लिए एक सेंट्रल प्लेटफॉर्म बनाने की दशा में लोगों को काफी सुविधा होगी. ‘ट्राइ’ का मानना है कि वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या बढ़ने की दशा में लोगों को किसी भी प्रकार के बिल के भुगतान में अासानी होगी. इससे ऑनलाइन ट्रांजेक्शंस को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे भुगतान की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी होगी.
 
भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स
 
भारतनेट प्रोजेक्ट के तहत देशभर के सभी पंचायतों और गांवों को इंटरनेट की कनेक्टिविटी मुहैया कराने की कवायद की जा रही है. भारत में संचार सेवाओं को रेगुलेट करनेवाली अथॉरिटी ट्राइ यानी टेलकम रेगुलेटरी अथॉरिटी छोटे और लघु उद्यमियों से यह जानने में जुटा है कि देशभर में कैसे छोटे-छोटे पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स स्थापित किये जा सकते हैं और उनमें वे किस तरह से भागीदारी निभा सकते हैं.
 
भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की स्थिति
31,518 पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स हैं देशभर में.
4.7 करोड़ पब्लिक वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स हैं दुनियाभर में.
568 फीसदी बढ़ोतरी हुई है दुनियाभर में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या में वर्ष 2013 से अब तक.
12 फीसदी की ही महज बढ़ोतरी हुई है भारत में वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स की संख्या में वर्ष 2013 से अब तक.

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