भूजल स्तर में भी गिरावट आई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट को ही देखें तो अकेले देहरादून में भूजल का स्तर करीब आठ मीटर नीचे चला गया है। साफ है कि पानी का लगातार दोहन तो हो रहा, लेकिन इसका स्तर बनाए रखने को प्रयास नहीं हो रहे। जबकि, वर्षा जल संरक्षण से यह संभव है। इस तरफ न तो तंत्र गंभीर नजर आता है और न जन। अतीत के आइने में झांके तो उत्तराखंड में वर्षा जल संरक्षण परंपरा का हिस्सा रहा है। इसी कड़ी में खाल-चाल बनाए जाते थे। छोटे बड़े इन गड््ढों में बूंदें सहेजी जाती थीं, जिससे जलस्रोत रीचार्ज होने के साथ ही भूजल का स्तर भी ठीक रहता था। और तो और खाल के नाम से स्थानों के नाम भी रखे गए थे। लेकिन, बदलते वक्त के साथ विभिन्न कारणों के चलते यह परंपरा कहीं नेपथ्य में चली गई है। यद्यपि, उत्तराखंड बनने के बाद सरकारी स्तर पर वर्षा जल संरक्षण के लिए जमीनी प्रयास करने की बात हुई, मगर इसकी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। पेयजल के लिए जिम्मेदार दोनों प्रमुख महकमों जल संस्थान और पेयजल निगम की ही बात करें तो दोनों ही जलस्रोत सूखने या जल स्तर में कमी की जानकारी तो देते हैं, लेकिन दोनों की ओर से यह दावा कभी नहीं किया गया कि उनके प्रयासों से कोई जलस्रोत रीचार्ज हुआ है। ऐसी ही स्थिति वन विभाग की भी है, जो कि हर साल ही वनों में आग की समस्या से जूझ रहा है। बात समझने की है कि यदि जंगल में नमी रहेगी तो आग की घटनाएं नाममात्र को होंगी। इसके लिए आवश्यक है कि बारिश की बूंदों को जंगल में सहेजा जाए। इससे नमी भी बरकरार रहेगी और जलस्रोत रीचार्ज होते, लेकिन इस मोर्चे पर वन महकमा अब तक प्रभावी पहल नहीं कर पाया है। यही नहीं, शहरी व मैदानी इलाकों में भूजल का बेतहाशा उपयोग हो रहा, लेकिन जिम्मेदार इस तरफ चुप्पी साधे हैं। कहने का आशय यह कि भविष्य में पानी का संकट न हो, इसके लिए वर्षा जल संरक्षण जरूरी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी।
समूचा विश्व आज जल संकट से त्रस्त है। विशेषज्ञों की मानें तो वर्षा जल संरक्षण इस संकट से उबरने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। इस लिहाज से उत्तराखंड को देखें तो बूंदों को सहेजने की दिशा में सूबा काफी पीछे है। राज्य में प्रतिवर्ष सामान्यतौर पर 1229 मिमी बारिश होती है, लेकिन इसका अधिकांश भाग यह यूं ही जाया हो जाता है। जाहिर है कि बारिश का पानी धरती में न समाने से जलस्रोत रीचार्ज नहीं हो पा रहे और इनके सूखने अथवा जलस्तर में कमी की खबरें सुर्खियां बनती हैं।
Additional Info
- Source: h
Published in
Blogs