क्षेत्र के ग्राम दबखेड़ी सलार निवासी 55 वर्षीय जितेंद्र चौधरी पेशे से सरकारी शिक्षक हैं। किसान परिवार में लालन-पालन होने के बीच उन्होंने शिक्षा और खेती को एक-दूसरे के साथ जोड़ने की पहल की। स्कूल समय के बाद आधुनिक खेती को कमाई का बेहतर विकल्प बनाया। गन्ना बेल्ट के रूप में पहचानी जाने वाली वेस्ट यूपी की धरती पर उन्होंने अपनी पैतृक कृषि भूमि को फिजूल समझी जाने वाली घास उगाकर सजाया है। वह अलग-अलग किस्मों की घास उगा रहे रहे हैं। लीक से हटकर आगे बढ़ने के जुनून के बीच यही खेती अब उनके लिए बेहतर मुनाफे का पर्याय बन चुकी है। अन्य किसानों के लिए भी उनकी यह पहल किसी नजीर से कम नहीं। लेमन, सिट्रोनेला, कैमोमिल समेत घास की कई अन्य किस्मों का भी वह उत्पादन कर रहे हैं। इनकी पत्तियों से निकलने वाले तेल का उपयोग विभिन्न औषधीय एवं सौंदर्य प्रसाधन से जुड़े उत्पादों में किया जा रहा है। इसके दम पर वह बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं।
उनके मुताबिक करीब छह माह में एक बीघा क्षेत्रफल में उगाई गई लेमन ग्रास की पत्तियों से 22 लीटर तक तेल निकलता है, जो बाजार में 950 से 1150 रुपये प्रति लीटर की दर पर आसानी से बिक जाता है। ठीक इसी तरह सिट्रोनेला घास के तेल की बाजार कीमत 1200 से 1400 रुपये प्रति लीटर है। इसके अलावा पेपरमेंट का उत्पादन करते हुए भी वह अपनी आय को बढ़ा रहे हैं। घास से तेल निकालने और उसके शोधन तक की पूरी प्रकिया के लिए उन्होंने खुद ही जरूरी संयंत्र को विकसित किया है। फिलहाल, उनका उत्पादन बेहद सीमित मात्रा में है तो स्थानीय स्तर पर ही उनके तेल की बिक्री हो जाती है।
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पेड़ से ज्यादा पत्तियों की कीमत
नहटौर: जितेंद्र चौधरी के मुताबिक किसान लिप्टिस की पौध को बेहतर कमाई के उद्देश्य से विकसित करते हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में वह इसका पूरा फायदा नहीं उठा पाते। उनके मुताबिक पांच साल में पेड़ कटान के बाद जो आमदनी होती है, उससे कहीं अधिक आमदनी इन्हीं पांच साल में लिप्टिस की पत्तियों को बेचकर की जा सकती है। वह बताते हैं कि लिप्टिस की पत्तियों का तेल अधिकांश दर्द निवारक दवाओं में प्रयोग किया जाता है, जिसे बाजार में 600 से 700 रुपये प्रति किलो के भाव पर आसानी से बेचा जा सकता है।